महात्मा गौतम बुद्ध
बुद्ध पूर्णिमा क्यों और कब मनाया जाता है? -
बुद्ध पूर्णिमा हर वर्ष बैशाख मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है |क्योंकि इसी दिन अर्थात बैसाख मास के पूर्णिमा के दिन महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म हुवा था और खाश बात यह है कि इसी दिन इसी मास में उनका मृत्यु (निर्वाहन) भी हुआ था |उनका जन्म 563 ईसा पूर्व लुम्बिनी में हुवा था |इसलिए बौद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन अपने यहां या बौद्ध तीर्थ स्थल पर पहुंचकर बुद्ध पूर्णिमा मनाते हैं |इतना ही नहीं इस दिन लोग धन लक्ष्मी का भी पूजा अर्चना करते हैं |
गौतम बुद्ध का जन्म, जन्मस्थान, माता - पिता और पत्नी -
महात्मा बुद्ध का जन्म लुम्बिनी वर्तमान के नेपाल देश में हुवा था | बुद्ध एक शाक्य वंश के राजा के पुत्र थे | उनके पिता का नाम महाराजा सुध्दोधन था और माता महारानी महामाया थीं | गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था |इनके जन्म के सात दिन बाद ही इनके माता का मृत्यु हो गया था | माता के मृत्यु के पश्चात इनकी माँ की सगी बहन अर्थात मौसी गौतमी ने इनका लालन - किया था | चूूंकि बुद्ध शाक्य बंशी राजा के पुत्र थे इसलिए इन्हें शाक्य मुनी भी कहा जाता है | इनकी मृत्यु 83 वर्ष की आयु में बैशाख मास के पूर्णिमा के दिन 483 ईसा पूर्व में उत्तर प्रदेश (भारत) के कुशीनगर में हुआ था |
शिक्षा प्राप्ति और हृदय परिवर्तन (गृह त्याग) /सिद्धार्थ से बुद्ध तक का सफर -
बुद्ध का जन्म 563 ईशा पुर्व शाक्य गणराज्य के तत्कालिन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में शाक्य वंश में हुआ था |आज यह नेपाल में है |जन्म के पांचवे दिन राजा सुध्दोधन ने अपने पुत्र के नामकरण के लिए पाँच विद्वान ब्राह्मणों को आमंत्रित किया और बालक के भविष्य के बारे में बताने के लिए कहा |पांचो ने भविष्य की गणना करके एक ही मत से कहा कि यह बालक महान कार्य और विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए जन्मा है |सिद्धि के लिए जन्मा है |इसलिए बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया |सिद्धार्थ बचपन से ही दया और करुणा के साक्षात मूर्ति थें |बचपन में जब वे दोस्तों के साथ घुड़सवारी का रेस लगाते और जब घोड़ों के मुह से झाग निकलता तो उन्हें लगता कि घोड़े थक गये हैं और उन्हें कास्ट हो रहा है, इसप्रकार वो घोड़े को रोक देते थे |रेस हार जाते थे |ऐसे भी जब वो कोई खेल जितने लगते थे और वो देखते थे कि दोस्तों का चेहरा उदास हो रहा है तो वे जानबूझकर बाजी हार जाते थे क्योंकि उन्हें किसी को उदास देखना अच्छा नहीं लगता था |सिद्धार्थ पशु पक्षियों पर भी मानव जैसा ही दया और करुणा देते थें |एक बार तो अपने चचेरे भाई के द्वारा शिकार किये हँस की जान बचाने के लिए राज दरबार तक वाद - विवाद के द्वारा बचाए थें |
सिद्धार्थ ने बचपन में गुरु विश्वामित्र से वेद, उपनिषद के साथ - साथ युद्ध विधा और राज्य - काज की शिक्षा प्राप्त की |शिक्षा प्राप्ति के बाद 16 बर्ष के आयु में उनका विवाह एक सुयोग्य कन्या यशोधरा से कर दिया गया |पत्नी के साथ महल में रहने लगें कुछ साल पश्चात पुत्र ने जन्म लिया |पुत्र का नाम राहुल रखा गया |लेकिन राज - महल की सुख - सुविधा उन्हें रास नहीं आती थी |
एक दिन वे राज्य भ्रमण के लिए निकले थे तभी उन्होंने एक जर्जर शरीर वाले वृद्ध को देखा, उसके बाद एक रोग के ग्रस्त व्यक्ति को फिर आगे उन्होंने एक मृतक की शव यात्रा देखी कुछ आगे जाने पर उन्होंने एक सन्यासी को देखा |यह घटना ने उन्हें गहरे सोच में डाल दिया और इसप्रकार इस सांसारिक सुखों से उनका मोह भंग हो गया और एक दिन अर्ध रात्री में पत्नी पुत्र को त्याग कर महल से निकल पड़े सन्यासी बनने के लिए |तब उनकी आयु मात्र 29 बर्ष की थी |सत्य और ज्ञान की खोज में वे 6 बर्ष तक भटकते रहे फिर एक सन्यासी कलार कलान ने उन्हें ध्यान और योग सिखाया | फिर राजगृह में एक सन्यासी ने उन्हें उदक तथा रमपुत्र सिखाया |दो सन्यासियों से भी उनका शिक्षा पूर्ण नहीं हुआ |उनकी समस्या ज्यों का त्यों था |फिर ओ आगे गया निकल गये |थक हार के गया मे एक बट्ट वृक्ष के नीचे ध्यान मग्न हो गए अंततः 17 वें दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ |इस प्रकार गया और ये बट्ट वृक्ष धर्म के लिए पवित्र तीर्थ स्थान गए | गया जिला बुद्ध के नाम से जुड़कर बौद्ध गया से और वट्ट वृक्ष शांति बट्ट वृक्ष के नाम से प्रसिद्ध हो गए |अब यहां लाखो लाख संख्या में श्रद्धालू तथा बौद्ध भिक्षु यहां आते हैं |
ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ का नाम बुद्ध हो गया |बुद्ध का अर्थ होता है वह व्यक्ति जिसने सत्य को पा लिया हो | बौद्ध ग्रंथ में बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति को निर्वान कहा जाता है | ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने क्या - क्या किया - ज्ञान प्राप्ति के बाद प्राप्ति के बाद बुद्ध ने वाराणसी के पास सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया | जिससे प्रभावित होकर पाँच योगियों ने उन्हें अपना गुरु मान लिया इसप्रकार गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की | धीरे धीरे लोग उनसे प्रभावित होने लगे, धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म अपनाने लगें | बुद्ध ने केवल देश ही नहीं अपितु विदेश तक धर्म प्राचार किए | विदेशों में भी लोगों ने बौद्ध धर्म को अपनाया |अब बौद्ध धर्म के अनुयायी भारत, नेपाल, श्रीलंका, चीन, जापान, भूटान समेत अन्य देशों में हैं | बौद्ध धर्म को कुछ राजाओ ने भी अपनाया जैसे कौशल राज्य के राजा प्रसन्नजित और मगध देश के राजा बिम्बिसार, अजातशत्रु और राजा उदयन ने |
बुद्ध के प्रिय छात्र आनंद थे जिन्हें बुद्ध अपना मित्र भी मानते थे | बुद्ध के शिष्यों में सबसे शिक्षित कश्यप और विनम्र और विद्वान शिष्य उपाली और यश आदि थे | उनके घोड़े का नाम गंधक था |
बुद्ध की मृत्यु तथा अंतिम उपदेश, मृत्यु स्थल -
83 साल के उम्र में 483 ईसापूर्व उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में उन्होंने अपना देह त्याग दिया |महान राजा सम्राट अशोक भी उनके बताये हुए मार्ग शांति के मार्ग और बौद्ध धर्म को अपना लिये | बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश एक धर्म प्रवर्तक सुभद्र और अपने शिष्य आनंद को सुनाया था | अंत में उन्होंने अपनी देह त्यागने की बात कही थी | बौद्ध ग्रंथ में बौद्ध के मृत्यु को महापरिर्निवान कहा कहा जाता है | जब तक बुद्ध जिंदा थे बौद्ध धर्म मे एक ही सम्प्रदाय था लेकिन बाद में सन्यासियों के मतभेदों से इसमे दो संप्रदाय हो गए 1. हिनयान और 2. महायान
बुद्ध के संदेश -
शांति सबसे अच्छा और उत्तम मार्ग है|
इंसान में करुणा, दया और दूसरों के प्रति प्रेम होना चाहिए |
सभी वस्तुएँ क्षरणशिल हैं और व्यक्ति को अपना मार्ग दर्शक स्वयं होना चाहिए |
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