महाराणा प्रताप का जन्म, मृत्यु, युद्ध, चेतक, मेवाड़, मुगलों या अकबर से युद्ध के बारे में जानकारी सबकुछ बिस्तार से , हिन्दी में

               Maharana Pratap (महाराणा प्रताप) 


महाराणा प्रताप का जन्म, मृत्यु, युद्ध, चेतक, मेवाड़, मुगलों या अकबर से युद्ध के बारे में जानकारी सबकुछ बिस्तार से , हिन्दी में 


महाराणा प्रताप जिनसे अकबर जैसे शक्तिशाली राजा ने कभी सामने से युद्ध करने की साहस नहीं किया | क्योंकि उसे डर था कि महाराणा प्रताप के तलवार का एक वार घोड़ा सहित घुड़सवार को बीच से दो भाग में चिड़ देता था | तो कहीं राणा से युद्ध में उसके साथ भी ऐसा ना हो जाए | मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप जिनका हाईट 7.6 फिट थी |उनका कवच 70 kg वजन का, जूते 10 - 10 kg वजन के, तलवार 10 kg और भाला 80 किलोग्राम वजन का था |उनके घोड़े का नाम चेतक जो हवा के रफ्तार से दौड़ता था और उनकी हाथी का नाम रामप्रसाद था जिसने युद्ध में अकबर के 12 हाथियों को अकेले हराया था |

अब महाराणा प्रताप के जीवन, जन्म के बारे में बिस्तार से -
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई को कुम्भलगढ़, राजस्थान में  हुआ था |उनके पिता श्री महाराज उदय  सिंह और  माता  जयवंति कुँवर थीं | उनकी  माता केवल माता ही नहीं  उनकी  माँ और  गुरु दोनों थीं | प्रारम्भ में माता ने  ही उन्हें   राजपूती मर्यादा,  धर्म और   नेतृत्व करने की क्षमता के बारे में सिखाया था | बचपन से ही महाराणा प्रताप बहुत बड़े साहसी, निडर और स्वतंत्र सोच वाले व्यक्ति थें|आगे  चलकर उनका   विवाह राजकुमारी अजवदे परमार से हुआ |
महाराणा प्रताप के पुत्रों का नाम राणा अमर सिंह और राणा भगवान दास था |वे भी बहुत महान योद्धा थे | जिनके बारे में हम आगे इसी कहानी में पढ़ेंगे | महाराणा प्रताप के  पिता उदय  सिंह की रानियों  में एक महारानी धीर बाई चाहती थीं कि उनका पुत्र जगमाल मेवाड़  का राजा बने | इसके लिए उन्होंने राजा उदय  सिंह  पर बहुत  दवाब डाला, राजा  मान भी गए | लेकिन  सबसे योग्य महाराणा प्रताप के होते हुए भी राजा साहब ने अपने 9 वें  नंबर  के  पुत्र जगमाल को उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा कर दिए,  लेकिन राणा प्रताप ने  कोई एतराज  नहीं  किया |राज्याभिषेक की  तैयारी  हो रही थी | लेकिन उदय सिंह के मंत्रियों को ये उचित नहीं लगा उन्होंने राजा को खूब  समझाया - बुझाया तब  राजा  की आँखे खुली फिर महाराणा प्रताप को 28 फरवरी 1572 ई को राज्याभिषेक कर दिया गया|इससे  जगमाल आगबबूला  होकर महल  छोड़ दिया और  अकबर ने उसे मिला कर जहाजपुर उसे सौप दिया |

महाराणा प्रताप और मुग़लों के बीच संघर्ष की कहानी -

महाराणा प्रताप ने राजा बनते ही मुगलों से युद्ध संघर्ष की घोषणा कर दी | क्योंकि राणा प्रताप के राजा बनने से पहले से ही मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर  मुग़लों का  कब्जा हो चुका था | इसलिए राजा बनते ही इन्होंने मुगलों से युद्ध की घोषणा कर दीये और इनकी सेना  बार - बार आक्रमण करके मुगलों के  छक्के  छुड़ा दिए | फिर अकबर ने 1573 - से 1575  के  बीच  इनसे समझौते के लिए 8 बार अपने  दूत के रूप में  राजा मान सिंह,  राजा भगवंतदास और अपने नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल को भेजा, लेकिन राणा प्रताप ने अकबर की पराधीनता स्वीकार नहीं की | फिर अकबर ने उन्हें मेवाड़ के बदले आधा हिन्दुस्तान तक देने की ऑफर  दे दिया | फिर भी महाराणा प्रताप को अपना छोटा राज्य  और आजादी पसंद था | मुगलों की आगे सर झुकाना नहीं, इसलिए राणा प्रताप ने  इस प्रस्ताव को  भी ठुकरा दिया|अकबर को  इतनी  बड़ी  कीमत  पर भी मेवाड़ चाहिए था, क्योंकि दिल्ली की गद्दी से  पश्चिमी देशों से जुड़ने के लिए, व्यापार के लिए रास्ता मेवाड़  से ही था और इस रास्ते पर  चट्टान  की  तरह खाड़ी थी मेवाड़ की राजगद्दी और उसपे स्वतंत्र विचारधारा वाले  महाराणा प्रताप |

हल्दी घाटी का युद्ध चेतक और महाराणा प्रताप हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध (1576) -

हार थक कर मुगल सेना और महाराणा प्रताप के बीच 1576 ई में हल्दी घाटी में विशाल युद्ध हुआ | मुगलों की विशाल 80,000 सेना थीं जबकि महाराणा प्रताप के पास केवल मात्र 15,000 की सेना | फिर भी महाराणा प्रताप घबराए नहीं, बोले कि हमारी एक सेना का जवान दुश्मन के 5 सेना के जवान को मार गिराएगा | युद्ध में महाराणा प्रताप ने मुगल सेना के मुख्य सेना पति बैलोल खान पर अपने तलवार से ऐसा वार किया की वह अपने घोड़ा सहित ऊपर से नीचे तक दो भाग में पत्ते की तरह फट गया|मुगल सेना में दहशत फैल गई | राणा प्रताप के हाथी रामप्रसाद बहुत बलवान और मुगल सेना तक मे प्रसिध्द था | अभी तक 8 मुगल हाथियों को मार चुका था |फिर मुगल सेना ने चारो ओर से 12 हाथियों से घेरकर महावत को मार दिया, जिससे रामप्रसाद बेकाबू हो गया और मुगल सेना ने उसे बंदी बनाकर अकबर के महल में पेश किया | महाराणा प्रताप अपने चेतक घोड़ा पर बैठकर सामने हाथी पर बैठे राजा मान सिंह से भाले से युद्ध करते हुए मान सिंह के हाथी को घायल कर दिएँ | तभी तलवार की वार से इनका घोड़ा का एक पैर घायल हो गया |मौका देख मुगल सेना ने इनपर चारो ओर से तीर बरसाना चालू कर दिया |इन्होंने ने डट कर उनका सामना किया | चारों ओर से घिर जाने पर चेतक ने वायु के तेजी से इन्हें युद्ध से बाहर निकाल लाया | अपने घायल पैर होते हुए भी उसी रफ्तार से इन्हें जंगल के ओर आया और रास्ते में एक 28 फिट का खाई आ गया उसे भी वह घायल पैरों से ही टॅप गया | राणा प्रताप को सुरक्षित पहुचाने के बाद वह अचेत हो गया | इसप्रकार हार्ट अटैक से उसकी मृत्यु हो गई | राणा प्रताप को अपने इस साथी के खो जाने पर बहुत दुःख हुवा |इस युद्ध में कुल 15,000 सेनाएं दोनों तरफ से मिलाकर मारी गयीं |लगभग 300 वर्षो तक हल्दी घाटी की भूमि की मिट्टी खून के कारण लाल दिखती थी | अभी भी कहीं - कहीं लाल ही है |

अकबर ने अपनी सेना को महाराणा प्रताप के हाथी रामप्रसाद को खूब खिलाने पिलाने और अपने वश में करने का आदेश दिया, 28 दिन तक एक से बढ़िया एक खाना देते रहें लेकिन वह एक दाना तक नहीं खाया और देह त्याग दिया |तभी अकबर ने कहा - जब महाराणा प्रताप को अपना नहीं बना पाया तो खुद महाराणा प्रताप को कैसे गुलाम बनाऊँगा |

महाराणा प्रताप का आगे का जीवन - 

अब पुनः महाराणा प्रताप ने जंगली आदिवासी भिलों के साथ एक  सेना तैयार किया  और मुगल  सेना पर छापामार आक्रमण  करने लगें | आज यहां तो कल  वहां  आक्रमण होने से मुगल सेना विचलित हो गई | उन्हें पता ही नहीं चल रहा था कि अगला आक्रमण कहा होगा | फिर  मुगल और राणा प्रताप के बीच निर्णायक युद्ध  हुआ  जिसे देवेर की युद्ध के  नाम   से जाना  जाता है |

देवेर की लड़ाई - 

देवेर की लड़ाई में महाराणा प्रताप के पुत्र राणा अमर सिंह ने भी मुगल सेना के प्रतिनिधि करने वाले सुल्तान खान  को तलवार के वार से  बीचो -  बीच घोड़ा   सहित फाड़ दिया और मुगल सेना के अजमेर के  गवर्नर खाने - खाना रहीम जो अकबर के जाने  माने कवि थे, उन्हें और उनके  बीबी बच्चों को बंदी बना  लिया | ये  बात जब महाराणा प्रताप  को पता चला तो वे राणा अमर  सिंह  पर  बहुत गुस्सा  हुए  और तुरंत उन्हें छोड़ देने  का आदेश दियें, और बोले कि महिलाओं और बच्चों को बंदी बनाना हमारे राजपूत धर्म का विरुद्ध है |महाराणा प्रताप के  दरिया दिली  को  देखकर  रहीम  ने उन पर कई दोहे और कविताएं  लिख डालें|

महाराणा प्रताप की मृत्यु - 

1596 ई में जंगल में शिकार करते हुए महाराणा प्रताप घायल हो गए और फिर इस चोट से कभी उबर नहीं पाएँ |अंततः 19 जनवरी 1597 ई को वे इस धरती को छोड़ स्वर्ग सिधार गए |

इस खबर को सुनकर अकबर बहुत खुश हुआ और बहुत दुःखी भी क्योकि पूरे भारत बर्ष मे यहीं एक मात्र व्यक्ति थें |जिन्हें अकबर कभी गुलाब नहीं बना पाया | महाराणा प्रताप को बंदी बनाने का उसका सपना कभी पूरा न हो सका |इसी एक दुश्मन के मृत्यु पर अकबर ने खूब रोया था |भरी दरबार ने उसने महाराणा प्रताप के विरता के बारे में बहुत कुछ कहा |

 सिसोदिया वंश मे बहुत बीर हुए जैसे - बप्पा रावल, राणा हमीर, राणा संगा आदि लेकि महाराणा केवल  राणा प्रताप  को  ही  कहा गया | वे   जब भी कहीं जाते एक चुटकी मेवाड़ की  मिट्टी  अपने माथे पर   जरूर लगाते और अपने  साथ ले जाते |

(अकबर ना कभी इनसे जीत पाया और ये ना कभी हारे) 

(ये पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने हमे आजाद रहने के बारे मे सिखाया, और कभी पराधीनता स्वीकार ना करने की सीख दी)
                                        

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