आकाश में चमकते सितारे सदा से मनुष्य के लिए आकर्षण के केन्द्र रहे हैं। मानव युगों से यह कल्पना करता रहा है कि वह इन नक्षत्रों के रूप-रंग, आकार और रचना को जान सके। उनकी यात्रा कर, उनके बारे में अनुभव प्राप्त कर सके। यह विचार भी उसे गुदगुदाता रहा है कि किसी-न-किसी नक्षत्र पर उसके जैसे लोग भी बसते होंगे। मानव की इसी जिज्ञासा ने उसे आकाश में विद्यमान नक्षत्रों की खोजबीन करने के लिए प्रेरित किया। युगों से चले आ रहे परीक्षणों के कारण ही आज मानव धरती पर बैठे-बैठे ही कुछ नक्षत्रों, घटने वाली घटनाओं को जानने में सक्षम हो गया है।
भारत में हजारों वर्ष पूर्व भी ग्रह-नक्षत्रों के विषय में विस्तार से चिन्तन-मनन किया गया।
आर्यभट भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि पृथ्वी अपने धुरी पर चक्कर लगाती है। उनके अनुसार तारामंडल स्थिर रहता है और पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। हम भी पृथ्वी के साथ घूमते रहते हैं। आज यह एक वैज्ञानिक तथ्य है पर उस समय लौकिक मत में ऐसी बात करना पाप समझा जाता था क्योंकि धर्म ग्रन्थ भी यही कहते थे कि पृथ्वी स्थिर है। आर्यभट का जन्म अश्मक प्रदेश में 476ई. में हुआ था। गोदावरी एवं नर्मदा के बीच के क्षेत्र को अश्मक प्रदेश के नाम से जाना जाता था। वे अपने नये विचारों का प्रचार करके लोगों में व्याप्त अन्धविश्वास को दूर करने एवं उत्तर भारत के ज्योतिषियों के विचारों का अध्ययन करने पाटलिपुत्र आये थे। पाटलिपुत्र नगर से थोड़ी दूर एक आश्रम में उनकी वेधशाला थी। जहाँ ताँबे, पीतल और लकड़ी के तरह-तरह के यंत्र रखे थे। आर्यभट को ज्योतिष सम्राट कहा जाता है पर गणित में भी उन्हें विशेष कुशलता प्राप्त थी। इन विषयों में उन्होंने अनेक पुरानी मान्यताओं का खण्डन कर नवीन मतों की स्थापना की। वे स्वतंत्र विचारों के व्यक्ति थे और किसी भी दबाव में आकर गलत बातों को स्वीकार करना उनके स्वभाव के विरुद्ध था। आर्यभट ने अपने अनुभवों और विचारों को " आर्यभटीयम्" नामक ग्रन्थ में संकलित किया। इस ग्रन्थ को 'आर्यभटीय' भी कहते हैं।
उनकी पुस्तक के एक श्लोक के आधार पर कहा जा सकता है कि आर्यभट उस समय केवल तेईस (23) वर्ष के थे जब यह पुस्तक लिखी गई। है न यह आश्चर्य की बात! क्योंकि इतनी छोटी आयु में धर्म ग्रन्थों और परम्परागत धारणाओं का खण्डन कर, नवीन विचारों और धारणाओं की स्थापनां करना कोई आसान काम न था |आर्यभटीयम् में गणित और ज्योतिष दोनों दी हैं यह महान ग्रन्थ कंवल दा सो बयालीस (242) पक्तियों एवं इक्कीस श्लोकों में सिमटा हुआ है। पर यह है पनऔर ज्यंतिष का अपुर्त्रं भण्डार।
आयभट महान ज्योतिष शास्त्री थें। उन्होंने अपने काल में अनेक अन्धविश्वामा का खण्डन किया। उन्होंने ही मबसे पहले कहा कि पृथ्वी गाल है और अपने धूरी पर चक्कर लगाती है। आयभट ने
चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण के कारणों पर भी स्पपष्ट रूप से प्रकाश डाल। उन्होंने बताया कि चन्द्रमा और पृथ्वी की परछाईँ पड़ने से ग्रहण होते हैं। पृथ्वी की छाया जब चन्द्रमा पर पड़ता है ता चन्रग्रहण हाता है। और चन्द्रमा की छाया जब पृथ्वी पर पड़ती है तब सूर्यग्रहण होता है। आर्यभट ने आज से हजारों वर्ष पहले
यह बता दिया था कि चन्द्रमा स्वयं नहीं चमकता अपितु वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है। आर्यभट के अष्ययन से उस समय लोगों ने जान लिया था कि चाँद के प्रकट होने तथा पूरा गायब होने के मध्य एक निश्चित समय होता है। सूरज, चौँद तथा नक्षत्र जिन मार्गों से यात्रा करते हैं उसे 'रविमार्ग' कहा गया और इसी के आधार पर ज्योतिषियां ने बारह (12) राशियां का विभाजन किया। आज भी यह मान्यता है कि आकाश के ग्रह-नक्षत्र मनुष्य के जीवन पर प्रभाव डालते हैं, परन्तु आर्यभटोय में किसी भी प्रकार का
अन्धविश्वास नहीं झलकता। यह ग्रन्थ पूर्णतया विज्ञान पर आधारित हैं। आयभट की सबसे बड़ी उपलब्धि शून्य की उपयोगिता को प्रमाणित करना था। जिसके आधार पर
बड़ी-से-बड़ी संख्या को सरलता से लिखा जा सकता है।
कम्प्यूटर की माप में शून्य का महत्व सर्वविदित है। अन्तरिक्ष की सभी गणनाएँ इसके बिना असम्भव है कुछ विद्वानों के कथनानुसार शून्य का ज्ञान भा सर्वप्रथम आर्यभट ने ही दिया। आर्यभट ने अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित के अनेक सिद्धान्त अपनी पुस्तक में दिए। उस समय वृत के व्यास और परिधि की जानकारी कम ही गणितज्ञों को थी। आर्यभट ने आज से लगभग डेढ़
हजार (1,500) वर्ष पहले अनुसंधान किया और बताया कि यदि वृत्त का व्यास ज्ञात है तो वृत्त की परिधि मालूम की जा सकती है। आर्यभट ने गणित की असंख्य बारीकियों को बड़ी-कुशलता से समझाया तथा नये-नईे सिद्धान्त स्थापित किए। आर्यभट ने ज्यामिति के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का अनुपम प्रदर्शन किया। उहांने त्रिकोण की तीन भुजाओं, उसके कोणों का अध्ययन कर, काण की समिति की नई पद्धति की खाज की। बाद में यूनानी- गणितज्ञों ने नी इसकी चर्चा की और धीरे- धीरें यह ज्ञान यूरोप में फैला। आज विद्यालयों में पढ़ाए।
जाने वाले रेखागणित को यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड की ज्यामिति पर आधारित भले ही मानते हों पर इसकी विस्तृत जड़े 'आर्यभटीय' में देखी जा सक्तती हैं। आर्यभट ने नया रास्ता दिखाया। उन्होंने दिखा दिया कि विज्ञान की खोज का रास्ता धार्मिक विश्वासों के रास्ते से जुदा है। वे हमारे देश के महान वैज्ञानिक ही नहीं, एक क्रान्तिकारी विचारक भी थे। श्रुति, स्मृति और पुराणों की परम्परा के विरोध में सही विचार प्रस्तुत करके उन्होंने बड़े साहस का परिचय दिया था और भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान की एक स्वस्थ परम्परा स्थापित की। इसालए आज हमने उन्हें आसमान में उठाया है। भारत ने अपने पहले कृत्रिम उपग्रह को किसी काल्पनिक देवता का नहीं बल्कि, अपने महान वैज्ञानिक का नाम दिया-आर्यभट।
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