कहानी : किसी गाँव में रघु नाम का एक लकड़हारा रहता था। वह बहुत ईमानदार तथा परिश्रमी था। वह दिनभर जंगल में लकड़ी काटता और शाम को उन्हें बेचकर जो पैसे मिलते, उनसे अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। वह कभी झूठ नहीं बोलता था, चाहे उसे झूठ बोलने से लाभ ही क्यों न मिलता हो। एक दिन वह जंगल में लकड़ी काटने के लिए गया। वह जंगल में एक नदी किनारे पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काटने लगा , तभी अचानक उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई । बेचारा लकड़हारा रघु बहुत उदास हो गया। वह सोचने लगा-यही तो मेरी जीविका का साधन थी। अब इसके बिना मैं क्या करूँगा। मेरे पास नई कुल्हाड़ी खरीदने के लिए धन भी नही है। यही सोचकर वह जोर-जोर से रोने लगा।उस नदी में एक जल देवता रहते थे। लकड़हारे की करुण आवाज सुनकर जल देवता जल से बाहर आए।
जल से निकले देवता ने रघु से पूछा, " तुम क्यों रो रहे हो ? " रघु रोते-रोते बोला, "मेरी एक मात्र कुल्हाड़ी इस नदी में गिर गई है। मेरे पास नई कुल्हाड़ी खरीदने के लिए धन भी नहीं है । अब मेरा जीवन यापन कैसे होगा?"' ऐसा कहकर वह और भी जोर से रोने लगा। जलदेवता उसे सांत्वना देते हुए बोले, "तुम चिन्ता मत करो। मैं अभी तुम्हारी कुल्हाड़ी निकालकर लाता हूँ।" जल देवता ने झट से पानी में डुबकी लगाई। उसके हाथ में सोने की कुल्हाडी थी। उसने पूछा-" क्या यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" लकड़हारा बोला- "नहीं, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।" यह कहकर वह उदास हो गया। ऐसा सुनकर जल देवता बहुत खुश हुआ। वह बोला-"तुम उदास मत होना। मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी निकालकर अभी लाता हूँ।" जल देवता ने झट से पानी में डुबकी लगाई और एक चाँदी की कुल्हाड़ी निकालकर लाए। उसने लकड़हारा से पूछा-"क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" लकड़हारा उदास होकर बोला-"यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की थी।" इस बार जल देवता ने पानी से एक लोहे की कुल्हाड़ी निकाली और पूछा-"क्या यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" कहा-"हाँ, यही मेरी कुल्हाड़ी है।
वास्तव में रघु कितना ईमानदार है, उसके अंदर कितनी ईमानदारी है, जल देवता देखना चाहते थे | वे रघु की ईमानदारी और सच्चाई से बहुत खुश हुए। उन्होंने वे दोनों कुल्हाड़ियाँ भी उसे ईनाम में दे दीं। लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ और घर की ओर चल दिया। उसने वे कुल्हाड़ियाँ बाजार में बेच दीं। इससे उसे बहुत-सा धन, लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने आगे बढ़कर मिला। अब वह धनी बन चुका था। रघु के पड़ोस में उसका एक लालची मित्र रामू रहता था। वह बहुत लालची था। एक दिन वह रघु के घर पहुँचा तथा उससे रातों-रात धनी बनने का कारण पूछा। चूंकि रघु ईमानदार व सच्चा था, अत: उसने सारी कहानी उसे सुना दी। अगले दिन लालच से वशीभूत होकर वह भी उसी नदी के किनारे लकड़ी काटने चल पड़ा। वहाँ पहुँचकर उसने जान-बूझकर अपनी कुल्हाड़ी पानी में गिरा दी और नदी के किनारे बैठकर जोर-जोर से रोने का नाटक करने लगा।
उसकी रोने की आवाज सुनकर वह जल देवता बाहर आए। उन्होंने उससे रोने का कारण पूछा। रामू बोला, "मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है। मैं बहुत गरीब हूँ। आप मेरी कुल्हाड़ी वापस ला दो।" जल देवता ने उसकी बात सुनकर नदी में डुबकी लगाई और एक सोने की कुल्हाड़ी बाहर ले आए। सोने की कुल्हाड़ी देखकर वह अपने लालच पर काबू न रख सका और बोला- " हाँ, हाँ, यही मेरी कुल्हाड़ी है।" जल देवता को उस पर बहुत क्रोध आया, वह बोले-"तुम बहुत झूठे, लालच से भरे हुए बेईमान आदमी हो।" यह तुम्हारी कुल्हाड़ी नहीं है। इतना कहकर वे जल में चले गए। रामू अपने लालच पर पछताता हुआ घर की ओर चल दिया। घर लौटते वक्त रास्ते में उसने सोचा-उस देवता ने ठीक ही कहा, मैं बहुत झूठा, लालची और बेईमान हूँ। मुझे अपने कर्मों की ही सजा मिली है। मैंने सोने की कुल्हाड़ी पाने के लालच में अपनी लोहे की कुल्हाड़ी भी खो दी।
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