कहानी :- चंपकवन में सभी तरह के पशु अपना-अपना जीवन-यापन करते थे। इस वन का राजा चंपक शेर अपने मंत्री झबरू रीछ की सहायता से पूरे राज्य-कार्य को भली-भाँति देखता। सभी
जानवर सुख से थे। किसी को किसी से कोई शिकायत न थी।
परंत इधर कुछ दिनों से राजा चंपक के मस्तक पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती थीं। कारण यह था कि चंपकवन में दिन-पर दिन चोरी की वरदातें बढ़ती जा रही थीं। राजा चंपक ने मंत्री झबरू रीछ को बुलाया और पूछा-" मंत्री जी, कौन हो सकता है यह चोर? वन में सुरक्षा बढ़ने के बाद भी चोरियाँ रुकी नहीं हैं। मंत्री झबरू रीछ ने जवाब दिया-"महाराज! हमारे सारे अधिकारी प्रयासरत हैं, परंतु चोर काफी चालाक लग रहा है जो पकड़ में नहीं आ पा रहा है।" "ऐसा करते हैं, हम रात के समय खुद ही भेष बदलकर जाएँगे और चोर को पकड़ने की कांशिश करेंगे। इससे प्रजा के हालचाल का भी पता चल जाएगा", राजा चंपक तैयार हो गया | राजा व मंत्री दोनों रात को भेष बदलकर जंगल की गलियों की खाक छान दिए, परंतु चोर का कहीं पता न था।
एक बार मंत्री झबरू की तबीयत कुछ खराब थी। राजा ने उसे आराम करने की सलाह दी और स्वयं ही भेष बदलकर चोर की खोज में निकल गया। वह सोचता जा रहा था कि अभी तक
चोर मेरे हाथ नहीं लगा। आखिर इसे पकड़ने के लिए कौन-सी तरकीब लगाई जाए। इसी सोच में राजा चंपक चला जा रहा था कि अचानक एक गड्ढे में जा गिरा। अधरे में वहाँ राजा
की आवाज सुनने वाला कोई न था। इतने में वहाँ से बड़बोली लोमड़ी गुजरी। "अरे! यह आवाज कहाँ से आ रही है ? लगता है गड्ढे में कोई गिर गया है। भाई, घबराना नहीं। मैं तुम्हें निकालती हूँ।" बड़बोली ने बड़ी कठिनाई से राजा चंपक को गड्ढे से निकाला और अपने घर ले आई। उसकी मरहम-पट्टी की और भोजन कराया। राजा उसकी सेवा से बड़ा प्रसन्न हुआ।
"तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं पास के वन से आया हूँ। तुम कौन हो ?" "मेरा नाम बड़बोली लोमड़ी है। मैं चोरनी हूँ।"
शेर को लगा लोमड़ी मजाक कर रही है। भला कोई स्वयं को भी चोर बताता है ? यह अपना परिचय नहीं देना चाहती। कोई बात नहीं। जो भी है, यह सबकी मददगार ही हो सकती है।
चंपक शेर लोमड़ी से विदा लेकर चला गया। अगले दिन वह राज-काज में व्यस्त था कि झबरू रीछ बड़ी प्रसन्न मुद्रा में आया और बोला-"महाराज की जय हो! महाराज की जय हो!
एक खुशखबरी है महाराज!" बोलो-बोलो मंत्री जी, क्या खुशखबरी है ?" "महाराज! चोर पकड़ा गया।" "उसे हमारे सामने पेश किया जाए।" झबरू ने ताली बजाई। दो गर्धे पहरेदार लोमड़ी को पकड़े भीतर आए " हुजूर, यह रहा चोर।
इसे हमने मुनिया हिरनी के घर चोरी करते रंगे हाथ पकड़ा है।"
शेर ने देखा तो उसे विश्वास नहीं हुआ। यह तो बड़बोली लोमड़ी थी, जिसके कारण पिछली रात उसकी जान बच सकी थी। वह बोला - " अरे बड़बोली, मुझे नहीं पहचाना ? मुझे तुमने कल गड्ढे से निकाला था और अपने घर ले गई थी। तुमने मेरी सेवा की।
मैंने तुम्हारा परिचय पूछा तो तुमने कहा 'चोरनी'। परंतु मुझे विश्वास नहीं हुआ था।" "महाराज मुझे माफ कर दीजिए। अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगी। " "तुम्हें चोर के रूप में देखकर मैं हैरान हूँ। उस दिन तुमने सच कहा था। सच बोलने और मेरी
मदद करने के लिए तुम जो चाहे ईनाम ले सकती हो।"
महाराज मैंने इतने लोगों की मेहनत की कमाई को लूटा परंतु सारे बुरे कामों पर मेरा एक सच भारी पड़ गया। अब में हमेशा अच्छे काम ही करुँगी। मुझे माफ कर दीजिए," लोमड़ी हाथ
जोड़कर बोली। "तुम्हें अपने किए पर पछतावा है, इसलिए मैं तुम्हें राजदरबार में नौकरी देकर तुम्हें अच्छे प्राणी की तरह जिंदगी व्यतीत करने का अवसर देता हूँ।" झबरू रीछ ने लोमड़ी से कहा-"हमेशा अच्छे काम करते हुए सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए; क्योंकि अच्छे काम का अच्छा ही फल मिलता है।"
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