कहानी :- बात उन दिनों की है जब महाराष्ट्र में पेशवाओं का राज्य था। पेशवाओं के दीवान थे नाना फड़नवीस। लोग उनकी बुद्धि का लोहा मानते थे। दूर-दूर तक उनकी प्रसिद्धि फैली हुई
थी। एक बार निजाम ने उनकी बुद्धि की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने नाना फड़नवीस को एक हाथी भिजवाया। वाहक के हाथ उन्होंने एक पत्र भी भेजा। पत्र में लिखा था-"नानाजी,
आपके बुद्धिचातुर्य का यश वायुमंडल में गूँज रहा है । आपके सामने कोई समस्या ठहरती नहीं। गुत्थियों को सुलझाने में आप माहिर हैं। एक हाथी आपकी सेवा में भेज रहे हैं। यदि आप एक सप्ताह के भीतर भेजे गए हाथी का सही वजन बता देंगे तो हम भी आपकी बुद्धि का लोहा मान लेंगे।'निजाम के पत्र ने सम्पूर्ण दरबार को चकरा दिया। हाथी का वजन तौलने हेतु सभी अपनी-अपनी बुद्धि दौड़ाने लगे। कोई कुछ सोचता-कोई कुछ। सभी अपनी-अपनी युक्ति लड़ाने का प्रयत्न कर रहे थे। उस समय तौलने हेतु बड़ी-बड़ी मशीनें या काँटे नहीं हुआ करते थे।
छोटी-बड़ी वस्तुओं को तराजू में तौलने का चलन था। परन्तु हाथी जैसा विशालकाय पशु कभी क्योंकर तौला जाएगा-ऐसा किसी ने सोचा भी न था। छोटी तराजू में हाथी आ नहीं सकता था और छोटे-छोटे भाग करके तौलना हाथी की हत्या कर देना था। नानाजी को एक उपाय सूझा। उन्होंने महावत को हाथी नदी किनारे ले चलने का आदेश दिया। शहर में खबर फैल गई कि हाथी नदी किनारे तौला जाएगा। हाथी के पीछे-पीछे जनसमूह नदी की ओर चल पड़ा। सभी देखना चाहते थे कि नाना हाथी को किस प्रकार तुलवाएँगे। नानाजी भी उठ खड़े हुए। उन्होंने अनुचरों से तराजू-बाट, एक बड़ी नाव तथा छोटे पत्थर नदी किनारे व्यवस्था करने को कहा और चल दिए।
हाथी को नाव पर चढ़ाया गया। हाथी के चढ़ने से नाव पानी में जितनी डूबी, वहाँ चिह्न लगा दिया गया। अब हाथी को नाव से उतारकर नाव में पत्थर भर दिए गए। जब तक नाव चिह्नित स्तर तक पहुँची, पत्थर भरे जाते रहे। चिह्न तक जल-स्तर पहुँचते ही नाव के पत्थरों को तौल लिया गया। इस प्रकार हाथी का सही वजन बता दिया गया।जब दूत निजाम के पास हाथी का वजन बताने पहुँचा तो निजाम बहुत आश्चर्यचकित
हुए। वे नानाजी की बुद्धि के चमत्कार से प्रभावित हुए बिना न रह सके। प्रसन्न होकर निजाम ने वह हाथी नानाजी को पुरस्कार में दे दिया।
ConversionConversion EmoticonEmoticon