गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे । गुरु गोविंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 ईस्वी को पटना में हुआ था । वे एक महान समाज सुधारक, सामाजिक चिंतक, महान कवि, लेखक और योद्धा थे । पिताजी का नाम गुरु तेज बहादुर था । उनकी माता का नाम माता गुजरी था । वे गुलामी के सख्त विरोधी थे । इसके अलावा वे जातिभेद गुलामी और धर्मांतरण के खिलाफ थे । उन्होंने लोगों के कल्याण हेतु अपना जीवन समर्पित कर दिया । वह मानवता से प्रेम करते थे । के जीवन संगिनी का नाम माता जीतों, माता सुंदरी, माता साहिब देवां था | सामाजिक बुराइयों को मिटाने हेतु उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया । उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं ।
महान योद्धा गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी और वे उसके प्रथम सेनापति भी थे । जिसे सिखों का सबसे अच्छा दिन माना जाता है । गोविंद सिंह ने गुलामी और धर्मांतरण को पसंद नहीं किया । इन सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए उन्होंने राजाओं को संगठित करने का प्रयास किया। तत्कालीन राजाओं ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण उनका समर्थन नहीं किया । इसके बावजूद गुरु गोविंद सिंह ने अपनी हिम्मत नहीं हारी । अपनी छोटी-सी सेना को संगठित करते हुए गुलामों के खिलाफ लड़े । वे मुगलों से 8 बार लड़े । इन युद्धों के दरमियान उनके चार पुत्र , जिनका नाम क्रमसः बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह थे,जो शहीद हो गए ।
गुरु गोविंद सिंह एक साहसी व्यक्ति थे । वे अपने मार्ग से कभी विचलित नहीं हुए । वे बुराइयों के विरुद्ध जीवन के अंतिम क्षण तक लड़ते रहे । उन्होंने हृदय से मानवता की सेवा की। 1708 ईस्वी में महाराष्ट्र के नादेन में उनकी मृत्यु हो गई । औरंगजेब भी उनके साहस और विचार से बहुत प्रभावित हुआ था । 1705 ई में बादशाह ने उनके स्वच्छेंद विचरण का आदेश दिया था ।
अतः, गुरु गोविंद सिंह का जीवन हमें बुराइयों से लड़ने की शिक्षा देता है । उनके बाड़ी से हमेशा सत्य वचन ही निकलते थे । उनके बाड़ी में सत्यता , सौम्यता, सादगी कूट-कूट कर भरी थी । सभी को अपने धर्म का पालन करते हुए दूसरे के धर्म के प्रति नफरत का भाव नहीं रखना चाहिए । महान लोगों के उपदेशों को किसी सीमा में नहीं बांधना चाहिए । उनकी शिक्षाएं सर्व कालीन और शब्दों के लिए होती हैं । वह हमें से खिलाते हैं कि जीवन के सिद्धांतों से समझौता नहीं करें ।
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