जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म, बचपन, माता - पिता और पत्नी :-
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1921 ईस्वी को समस्तीपुर के ग्राम पितौंझिया हुआ । उनके पिता का नाम गोकुल ठाकुर और माताश्री का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। उनका विवाह फुलेसरी देवी से हुआ था । गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले श्री कर्पूरी ठाकुर का जन्म एक सामान्य गरीब परिवार में ही हुआ था। उनका बचपन का समय अन्य गरीब परिवार के बच्चों के तरह हीं खेलने कूदने तथा गाय भैंस और पशुओं को चलाने में बीता । जब वह केवल मात्र 6 वर्ष के थे तब उनके माता-पिता ने उन्हें गांव की पाठशाला में नाम लिखवा दिया। वह विद्यालय भी जाते थे, उसके बाद पशुओं को भी चलाते थे । पशुओं को चाराना और चराने के दौरान बिहार के परंपरिक गीतों को गाना बिहार का एक चलन एवं विशिष्ट परंपरा है। नन्हे से कर्पूरी को भी यह काम बहुत अच्छा लगता था । जननायक कर्पूरी ठाकुर को दौड़ने और तैरने का बहुत शौक था । उन्हें बिहार के पारंपरिक गीतों को गाना और गांव के मंडली में 'डफ' बजाने का भी शौक था । इस मंडली के साथ वे फागुन में फागुनी गीत, चैत मास में चैती गीत गाते थे और इस मंडली का अगुआगिरी करते थे। यह काम वे बिहार के महान नेता बनने के बाद भी करते रहे ।
देश की आजादी तथा बिहार राज्य के विकास के लिए संघर्ष :-
आजादी और क्रांति के कार्यों से वे अंग्रेजी हुकूमत के नजर में आ गए स्वरूप उन्हें गिरफ्तार करके दरभंगा से भागलपुर जेल में ले जाकर बंद कर दिया गया । लेकिन उनमें नेतृत्व करने की क्षमता थी और हमेशा समाज और देश के समस्याओं के लिए लड़ते रहे। इस प्रकार उन्होंने कैदियों की कुव्यवस्था के प्रति आवाज बुलंद किया और 25 दिनों तक अन्न- जल को त्याग कर आंदोलन किया। जिससे सरकार झुकने के लिए मजबूर हो गई । इस प्रकार 1942 से लगातार क्रांति से जुड़े रहे। जननायक जयप्रकाश नारायण द्वारा बनाई गई संगठन "आजाद दस्ता" के सक्रिय सदस्य भी रहे, ऐसे में आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण गांव के ही मध्य विद्यालय में प्रति माह ₹30 पर अध्यापन का कार्य करते रहें और रात में अपने संगठन "आजाद दस्ता" के लिए लोगों को संगठित करने का कार्य करते रहें, फिर उन्हें 23 अक्टूबर 1983 ईस्वी को 2:00 बजे रात को गिरफ्तार करके दरभंगा जेल में डाल दिया गया ।
कर्पूरी ठाकुर की पढ़ाई और देश के लिए संघर्ष तथा कठिन परिश्रम :-
कर्पूरी ठाकुर सन् 1940 ईस्वी में मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से पास कर गए। इसके बाद उन्होंने चंद्रधारी मिथिला कॉलेज दरभंगा में आई. ए. में नाम लिखवा लिया । लेकिन कॉलेज आना जाना एक कठिन काम था क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी और कॉलेज, घर से बहुत दूर था। इसलिए गाड़ी से जा नहीं पाते क्योंकि किराया नहीं था और कॉलेज के पास में छात्रावास में रहकर छात्रावास न शुल्क भी चुका नहीं सकते थे । इसलिए वे सुबह ही धोती पहन के कंधे पर गमछा लेकर पैदल चलकर ताजपुर रेलवे स्टेशन पहुंच जाते थे। ताकि वहां से रेलगाड़ी पकड़ कर दरभंगा पहुंच सके। उस समय उनके पांव में जूता चप्पल भी नहीं हुआ करता था। इस प्रकार दिनभर पढ़कर शाम को घर लौट आते थे । प्रतिदिन उन्हें 50 से 60 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी, जिससे शरीर में भारी थकान हो जाता था। लेकिन फिर भी उन्होंने इन सारे दुख - दर्द को सहते हुए, कठोर जीवन बिताते हुए पढ़ाई जारी रखा और 1942 ईस्वी में आइ. ए. की परीक्षा भी द्वितीय श्रेणी से पास कर लिया। फिर स्नातक में उन्होंने कला श्रेणी से उसी कॉलेज में नामांकन करा लिया । लेकिन वे 1942 ईस्वी के क्राति से जुड़ गए और जिले में कुव्यवस्था के खिलाफ उन्होंने कैदियों को संगठित करना शुरू कर दिया और दरभंगा से अपनी आजादी के कार्यक्रम को जारी रखा।
कर्पूरी ठाकुर क्या थे और अपने जीवन में उन्होंने क्या - क्या हासिल किया? :-
फिर वह समय आया कि देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया । 1952 ईसवी में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रथम बार बिहार में आम चुनाव हुआ। सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर कर्पूरी ठाकुर समस्तीपुर के ताजपुर विधानसभा से विधानसभा का चुनाव लड़े और भारी बहुमत से विजई हो गए । इसके बाद उन्होंने गरीबी, भुखमरी, बाढ़, भ्रष्टाचार, महंगाई और बिहार राज्य के विकास के लिए तथा बहुत सारी समस्याओं के लिए विधानसभा के अंदर जोरदार आवाज उठाया । सन 1952 से 1988 तक लगातार वे विधानसभा के सदस्य लोगों द्वारा चुने जाते रहे । अपने इस राजनीतिक यात्रा में उन्होंने कई प्रमुख दायित्व को संभाला । जिसमें वे बिहार विधानसभा के कार्यवाहक अध्यक्ष, विरोधी दल के नेता, उपमुख्यमंत्री और दो बार बिहार के मुख्यमंत्री भी बने । 1967 में वे उपमुख्यमंत्री, 1970 एवं 1977 में मुख्यमंत्री बने ।
कर्पूरी ठाकुर को लोग जननायक क्यों बोलते हैं? :-
समाज सेवा, गरीबों के उत्थान और पिछले एवं वंचित वर्ग के लिए वह लगातार लड़ते रहे । समाज सेवा से संबंधित कई घटनाएं उनके जीवन के लोकप्रिय है । जब वे पहली बार 1970 में मुख्यमंत्री बने थे तो सचिवालय उन्हें लिफ्ट से ले जाया गया । जब वह लिफ्ट में सवार हुए तो उन्होंने देखा कि अंदर लिखा था "Only for Officers" , यह देखकर उन्हें काफी दुख हुआ और लगा कि इससे सामंती प्रथा की बू आती है। इसके बाद उन्होंने पदाधिकारियों को कहा कि यह लिखा हुआ मिटा दिया जाए और इस लिफ्ट से छोटा कर्मचारी या आम जनता भी सचिवालय तक पहुंच सकती है । इसके अलावा एक और कहानी है कि जब 1957 में कर्पूरी ठाकुर एक गांव के दौरा कर रहे थे, तब उन्होंने एक गांव में देखा कि एक बालक जो हैजा बीमारी से पीड़ित था खाट पर लेटे- लेटे कराह रहा था, क्योंकि सड़क अच्छा ना होने के कारण और वाहन सुविधा भी ना होने के कारण कोई उसे अस्पताल तक पहुंचा नहीं पा रहा था। यह देखने के बाद कर्पूरी ठाकुर ने फौरन उसे अपने कंधे पर उठाया और दौड़ते हुए उसे 5 किलोमीटर दूर अस्पताल में ले जाकर भर्ती कराया । इससे पता चलता है कि समाज के प्रति उनका सोच कैसा था?
जननायक कर्पूरी ठाकुर का मृत्यु /निधन कब हुआ था?
जननायक कर्पूरी ठाकुर दलगत राजनीति से तब बहुत धक्का लगा जब अगस्त सन 1987 ईस्वी को उन्हें नेताप्रतिपक्ष से हटा दिया गया । इस प्रकार हार्ड अटैक आने के कारण 17 फरवरी 1988 ईस्वी को निधन हो गया ।
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